AYUSH Policy Rajasthan 2025: पहली बार इलेक्ट्रोपैथी को मिली मान्यता

नई दिल्लीः राजस्थान सरकार ने AYUSH Policy Rajasthan 2025 के जरिए प्रदेश की पारंपरिक चिकित्सा व्यवस्था को एक नया और आधुनिक रूप देने की शुरुआत की है। इस बार सबसे बड़ा बदलाव यह है कि पहली बार इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति को भी औपचारिक रूप से नीति में शामिल किया गया है। यह कदम वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी पहल माना जा रहा है।

अब तक कौन-कौन सी पद्धतियां थीं शामिल?

अब तक आयुष की जो पांच प्रमुख पद्धतियां थीं, उनमें शामिल हैं:

  • आयुर्वेद
  • योग और प्राकृतिक चिकित्सा
  • यूनानी
  • सिद्ध
  • होम्योपैथी

इनमें से यूनानी और होम्योपैथी भारत में विदेशों से आईं, जबकि बाकी पद्धतियां भारत की देन हैं।

वर्ष 2018 में राजस्थान सरकार ने इलेक्ट्रोपैथी को लेकर एक अधिनियम पारित किया था। इसी के आधार पर मई 2025 में इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा बोर्ड का गठन किया गया। अब इसे नीति में जगह देना इस चिकित्सा पद्धति के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

नीति में किए गए प्रमुख बदलाव

  • इलेक्ट्रोपैथी के शिक्षण, प्रशिक्षण और पंजीकरण को अब औपचारिक रूप दिया जाएगा।
  • जयपुर में आयुष शिक्षा निदेशालय की स्थापना प्रस्तावित की गई है।
  • जिलों और ग्राम पंचायत स्तर पर आयुष औषधालयों और अस्पतालों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
  • NEET परीक्षा के जरिए अब BNYS कोर्स में भी दाखिला मिलेगा, जैसे कि BAMS, BHMS और BUMS में होता है।
  • आयुष अस्पतालों में अब सोनोग्राफी और CT स्कैन जैसी आधुनिक जांच सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी।

शोध और शिक्षा को मिलेगा बढ़ावा

सरकार की योजना है कि जोधपुर स्थित राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयुर्वेद रिसर्च सेंटर स्थापित किया जाए। इसके अलावा:

  • B.Pharma (Ayurveda), M.Pharma (Ayurveda) और डिप्लोमा कोर्सेस की शुरुआत की जाएगी।
  • राज्य में औषधि निर्माण एवं विपणन निगम की स्थापना का भी प्रस्ताव है, जो औषधियों के उत्पादन और रिसर्च को बढ़ावा देगा।

मिश्रित प्रतिक्रिया: स्वागत भी, विरोध भी

सरकार के इस फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।

विरोध की आवाज़

डॉ. विमलेश विनोद कटारा (सचिव, अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद एवं योग विकास परिषद) ने कहा कि इलेक्ट्रोपैथी को अभी वैज्ञानिक मान्यता नहीं मिली है, और न ही इसका कोई ठोस शैक्षणिक ढांचा राज्य में मौजूद है। उन्होंने इस फैसले को गैर-जरूरी और अवैज्ञानिक बताया।

समर्थन का सुर

वहीं, हेमंत सेठिया (अध्यक्ष, इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा परिषद) ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह चिकित्सा पद्धति तीन दशक से राज्य में पढ़ाई जा रही है, और अब इसे नीति में स्थान मिलना एक सकारात्मक कदम है।

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